Thursday 7 July 2022

तो बात होए

 


वो अपने नजदीक सटा ले मुझको तो बात होए
वो ज़ुल्फों में अपनी लगा ले मुझको तो बात होए


हूँ सुर्ख़ पत्ता महज़ और है ज़रा सी खुशबू
वो गुल गुलिस्तां से चुरा ले मुझको तो बात होए


मैं बन के बादल शब-ओ-रोज़1 बरसूँ
वो प्यास अपनी बना ले मुझको तो बात होए


हो उसको ज़रुरत तो बन जाऊं काजल
वो नैनों में अपने सजा ले मुझको तो बात होए


है चाह मेरी मैं बन जाऊँ सुर्ख़ी2
वो लबों पे अपने लगा ले मुझको तो बात होए


बनूँ बिंदी भी मैं चूमूँ उसकी जबीं3 को
वो दुपट्टे के मुआफ़िक संभाले मुझको तो बात होए


'नूतन' इतना चाहूँ वो बन जाए राधा
फिर श्याम अपना बना ले मुझको तो बात होए

1. शब-ओ-रोज़ : दिन-रात, 2. सुर्ख़ी :  लिपस्टिक, 3. जबीं : माथा

 - कान्हा 'नूतन'

Tuesday 7 March 2017


तेरी यही कहानी है




आँखों में आँसू हो फैले
होंठों पर हँसी दिखानी है
बरसों से चली आ रही
तेरी यही कहानी है |

पापा भजिया
बेटी खिचड़ी
बेटा हलवे की माँग करे
तू जो बचा है
खा लेती है
तेरी यही कहानी है |

पायल आँगन से बाँधे
घूँघट मर्यादा बतलाता
कुमकुम मन पर
रोक लगाती है
तेरी यही कहानी है |

पापा को शादी
ससुर को पोता
पति को चाहिए जवानी
तेरी आशाएँ बेमतलब
रह जाती है
तेरी यही कहानी है |

मिठाई बाजार से आती
तेरी आधी मिठाई भी
भाई को देती
उसमे भी तुझे खुशी
मिल जाती है
तेरी यही कहानी है |

कभी हत्या
कभी बलात्कार
कभी तेज़ाब झेलती
जिंदगी जीती कम
ख़तरे में ज़्यादा
बिताती है
तेरी यही कहानी है |

माँ , बहन , बेटी या पत्नी
तू हर रूप में पूजित है
कविता अपनी ये छोटी सी 'नूतन' करे समर्पित तुझको
तू ही मानव का उद्गम है
तेरी अमर कहानी है |

-कान्हा'नूतन'

Wednesday 1 March 2017


इक गज़ल




हवस की मोहब्बतें घूमती मुझे सड़कों पे मिलती है
हीरे-मोती की ख्वाहिशें सजी पलकों पे मिलती है

मैं पालूँ जमाने का हर एश-ओ-आराम फिर भी
इस प्यासे को नदी , माँ तेरे कदमों में मिलती है |

गानें दुनिया जहान के चलते हैं अब मगर
वो राग नहीं जो , तेरी लौरी के तराने में मिलती है |

बेशक है मखमली बिस्तर मेरा सोने को
सुकून की नींद  , फिर भी तेरे थापों से मिलती है |

मेरी औकात पर यूँ जब कभी चाँटा जो पड़ जाए
मेरी चोट की पीड़ा , तेरी आहों में मिलती है |

मत खोना ए दोस्त इस खुदा को तुम कभी
हर शख्स मिल जाता , फिर माँ ना जमाने में मिलती है ||

-कान्हा'नूतन'

Sunday 26 February 2017

Sunday 15 January 2017


जी भर के जीले


क्यूँ कल पर अपने रोता है
क्यूँ कल में भागा करता है

कल बीता ना बदलेगा
ना कल पर तेरा वश है , सुनले
मिला वक़्त बस
आज का है
खुशियाँ बाट , जी भर के जीले

कोई रंक हुआ है राजा
शहजादे भी हुए फटीचर
मिट्टी की ही पूजा होती
मिट्टी ही हो जाती कीचड़
जीवन ने ऐसा ही खेला है
कहीं ख़ुशी का फूल खिला ,
कहीं दुःख का झाड़ कंटीला है

कल-कल में क्यूँ खोया रहता
कल को रह जाने दे कल पे
बात ज्ञान की करता हूँ
नूतन
'आज' याद तू रख ले
यही वक़्त तो जीने का है
मौज मना , जी भर के जीले

-कान्हा 'नूतन'


Wednesday 5 November 2014



उससे बात हो गई 





फ़ोन उठाया,
                       निकल लिया 
दोस्तों की महफ़िल थी,
          बस अकेला चल लिया 
न जाने क्यूँ,
                 इस फ़ोन की घंटी 
                        खास हो गई;
अभी तक तो कोरा था 
पर अब किसी से बात हो गई । 

घंटों बीत जाते हैं,
               उससे बतियाने में 
वो ही याद आती है, 
       हर नगमें और तरानें में 
न जाने क्यूँ ,
         इन अधरों के मुस्कान 
                       साथ हो गई;
अभी तक तो तन्हा था 
 पर अब उससे बात हो गई ।

~ कान्हा 'नूतन '

Monday 6 October 2014

"हाँ, प्यार मैं तुझसे करता हूँ"

क लड़की है भोली‍‌‍ भाली सी,
कुछ सीधी है मतवाली सी,
कुछ सादी है नखराली सी,
बगिया की है फूलवारी सी,
जिसको मैं नारी रुप का, पूरा श्रृंगार समझता हूँ;
हाँ, प्यार मैं उससे करता हूँ |

वो पापा की बिटिया प्यारी है,
वो राजा की राजकुमारी है,
वो आँगन की किलकारी है,
वो मुस्काए मधु पर भारी है,
जिसके लिए मैं अपना पूरा, लेखन न्यौछावर करता हूँ;
हाँ, प्यार मैं उससे करता हूँ |

वो सावन में झूले झूलती है,
वो बेपरवाह सी घूमती है,
वो तारें आसमाँ के चूमती है,
वो खुलकर मस्ती में झूमती है,
जिसके लिए मैं जीवन को, एक उपहार समझता हूँ;
हाँ, प्यार मैं उससे करता हूँ |

तम को खुद में हर लेती है,
नव किरण फैला देती  है,
स्वभाव में आशा साथ लिए,
मुरझे फूलों को महका देती है,
जिसके लिए मैं जीवन की, इच्छा साकार समझता हूँ;
हाँ, प्यार मैं उससे करता हूँ |

तू समझ गयी इन छंदो को,
या अब भी रह गई उलझी सी,
कुछ मिला तूझे इस रचना में,
या बैठी यूँ ही अनसूलझी सी,
तू जान गयी तो बस इसको ही, सच्चा प्यार मैं कहता हूँ;
हाँ, प्यार मैं तुझसे करता हूँ.....
हाँ, प्यार मैं तुझसे करता हूँ |