Monday 6 October 2014

"हाँ, प्यार मैं तुझसे करता हूँ"

क लड़की है भोली‍‌‍ भाली सी,
कुछ सीधी है मतवाली सी,
कुछ सादी है नखराली सी,
बगिया की है फूलवारी सी,
जिसको मैं नारी रुप का, पूरा श्रृंगार समझता हूँ;
हाँ, प्यार मैं उससे करता हूँ |

वो पापा की बिटिया प्यारी है,
वो राजा की राजकुमारी है,
वो आँगन की किलकारी है,
वो मुस्काए मधु पर भारी है,
जिसके लिए मैं अपना पूरा, लेखन न्यौछावर करता हूँ;
हाँ, प्यार मैं उससे करता हूँ |

वो सावन में झूले झूलती है,
वो बेपरवाह सी घूमती है,
वो तारें आसमाँ के चूमती है,
वो खुलकर मस्ती में झूमती है,
जिसके लिए मैं जीवन को, एक उपहार समझता हूँ;
हाँ, प्यार मैं उससे करता हूँ |

तम को खुद में हर लेती है,
नव किरण फैला देती  है,
स्वभाव में आशा साथ लिए,
मुरझे फूलों को महका देती है,
जिसके लिए मैं जीवन की, इच्छा साकार समझता हूँ;
हाँ, प्यार मैं उससे करता हूँ |

तू समझ गयी इन छंदो को,
या अब भी रह गई उलझी सी,
कुछ मिला तूझे इस रचना में,
या बैठी यूँ ही अनसूलझी सी,
तू जान गयी तो बस इसको ही, सच्चा प्यार मैं कहता हूँ;
हाँ, प्यार मैं तुझसे करता हूँ.....
हाँ, प्यार मैं तुझसे करता हूँ |