फ़ोन उठाया,
निकल लिया
दोस्तों की महफ़िल थी,
बस अकेला चल लिया
न जाने क्यूँ,
इस फ़ोन की घंटी
खास हो गई;
अभी तक तो कोरा था
पर अब किसी से बात हो गई ।
घंटों बीत जाते हैं,
उससे बतियाने में
वो ही याद आती है,
हर नगमें और तरानें में
न जाने क्यूँ ,
इन अधरों के मुस्कान
साथ हो गई;
अभी तक तो तन्हा था
पर अब उससे बात हो गई ।
~ कान्हा 'नूतन '