Thursday 7 July 2022

तो बात होए

 


वो अपने नजदीक सटा ले मुझको तो बात होए
वो ज़ुल्फों में अपनी लगा ले मुझको तो बात होए


हूँ सुर्ख़ पत्ता महज़ और है ज़रा सी खुशबू
वो गुल गुलिस्तां से चुरा ले मुझको तो बात होए


मैं बन के बादल शब-ओ-रोज़1 बरसूँ
वो प्यास अपनी बना ले मुझको तो बात होए


हो उसको ज़रुरत तो बन जाऊं काजल
वो नैनों में अपने सजा ले मुझको तो बात होए


है चाह मेरी मैं बन जाऊँ सुर्ख़ी2
वो लबों पे अपने लगा ले मुझको तो बात होए


बनूँ बिंदी भी मैं चूमूँ उसकी जबीं3 को
वो दुपट्टे के मुआफ़िक संभाले मुझको तो बात होए


'नूतन' इतना चाहूँ वो बन जाए राधा
फिर श्याम अपना बना ले मुझको तो बात होए

1. शब-ओ-रोज़ : दिन-रात, 2. सुर्ख़ी :  लिपस्टिक, 3. जबीं : माथा

 - कान्हा 'नूतन'