Sunday 21 September 2014

अर्द्धांगिनी

जब से दोनों का हाथ मिला 
हर संकट में तेरा साथ मिला 
तू  जो मुझसे रूठी ना 
ये डोर जो अपनी टूटी ना 
तू  खुशियों में मेरे साथ घुली 
काँटों पर मेरे साथ चली 
तूने यम को भी सम्मुख झुका दिया 
मुझको रिश्ते का मतलब सीखा दिया ॥ 


तेरा चरित्र महान  होगा 
हर सजा को मेरे साथ भोगा 
जीवन  तेरा बस समर्पण है 
मेरी मुस्कान ये तुझको अर्पण है 
हर मर्ज की दवा है तू मेरी 
ईश्वर की दुआ है तू मेरी 
तूने आग को भी पार करके दिखा दिया 
मुझको रिश्ते का मतलब सीखा दिया ॥


मेरी हर बात  पढ़ लेती 
बिन कहे लफ़्ज़ों को समझ लेती 
खुद की तुझको परवाह थी कहाँ 
ध्यान वहीं मैं था जहाँ 
ये घर तेरा रखवाला है 
तूने ही घर कर डाला है 
तूने ' एक देह दो रूह ' को सार्थक बना दिया 
मुझको रिश्ते का मतलब सीखा दिया ॥ 


नालायक हैं वे जो दहेज़-पूँजी लेते हैं 
बेटी वाले तो  खुशियों की कुँजी देते हैं 
वो है रंगोली उस घर की ,जो पाँव तले तुम दबाते हो 
उसका रूप तो विकृत हुआ ,खुद ही लक्ष्मी ठुकराते हो
तुम खींचो जितना भी उसे ,वो तनाव को सह लेगी 
मैं दो घरों की बँधी डोर ,मन ही मन ये कह लेगी 
उसको प्रताड़ित करके तो ,तुमने  खुद को ही लजा दिया 
वो है एक देवी का रूप ,
उसने  शक्ति का मतलब सीखा दिया॥ 

~ कान्हा'नूतन'

Friday 5 September 2014

गुरूजी

जीवन के पथ पर था निकल पड़ा
अनजाने, सब साथी थे
अनदेखी एक मंजिल थी
ना मोड़ थे मुझको पता यहाँ
ना काँटो का था दर्द पता।
तेरे अनुमार्ग पर चलकर ही
मैं जो कुछ हूँ वो बन पाया
ख्वाबों मैं थे आयाम कई
अब रूप साकार है मिल पाया।
तेरे मुझ पर विश्वास बिन
सफल नहीं मैं हो पाता
जो भी हूँ वो तुझसे है
तुझ बिन भला क्या हो पाता;
तुझ बिन भला क्या हो पाता..॥
~कान्हा'नूतन'

Thursday 4 September 2014

बेटी


बेटी ही घर की मर्यादा है;
बेटी से घर की
हर कली खिली।
बेटी ने धरा को सींचा है;
दो रिश्तों की
इसमें नींव पली।

क्यों रोको तुम इसको
बढ़ने से
इसे ओढ़नी ,घुँघट में  समेटे हो।
चिराग  तो घर में
बहुत हैं पर
रोशनी को थामे बैठे हो ॥॥

कान्हा 'नूतन '