Sunday 15 January 2017


जी भर के जीले


क्यूँ कल पर अपने रोता है
क्यूँ कल में भागा करता है

कल बीता ना बदलेगा
ना कल पर तेरा वश है , सुनले
मिला वक़्त बस
आज का है
खुशियाँ बाट , जी भर के जीले

कोई रंक हुआ है राजा
शहजादे भी हुए फटीचर
मिट्टी की ही पूजा होती
मिट्टी ही हो जाती कीचड़
जीवन ने ऐसा ही खेला है
कहीं ख़ुशी का फूल खिला ,
कहीं दुःख का झाड़ कंटीला है

कल-कल में क्यूँ खोया रहता
कल को रह जाने दे कल पे
बात ज्ञान की करता हूँ
नूतन
'आज' याद तू रख ले
यही वक़्त तो जीने का है
मौज मना , जी भर के जीले

-कान्हा 'नूतन'


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