KAVYA PATH
Monday 4 August 2014
" श्रृंगार रूपक "
क्या लिखूं मैं उसके बारे में
,
मैं खुद उलझा
सा बैठा हूँ ।
उसके मन का कोना तक जानूं
,
खुद से अनजाना बैठा हूँ ।
हर जगह मैं उसको पाता हूँ
,
खुद से खुद को खो बैठा हूँ ।
मैं एक दीपक हूँ
,
उस बाती की आग समेटे बैठा हूँ ॥
-
कान्हा
'
नूतन
'
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