" रूप "
एक चाँद आसमाँ में , पूरी सृष्टि के सामने ।
एक चाँद आगे खड़ा , मेरी द्रष्टि के सामने ।
आँखों में उसके सुरमा , नज़र उसकी उतारने ।
पाँवों में पहनी है पायल , चरण को पखारने ।
माथे पे उसके बिन्दिया , सूरत को निहारने ।
केशों में लगे हैं फूल भी , यूँ जुल्फ को निखारने ।
श्रृंगार गान करने को कबसे था तरस गया ।
रूप तेरा देखा , तू मन में बस गया ॥
~ कान्हा 'नूतन '
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