Thursday 4 September 2014

बेटी


बेटी ही घर की मर्यादा है;
बेटी से घर की
हर कली खिली।
बेटी ने धरा को सींचा है;
दो रिश्तों की
इसमें नींव पली।

क्यों रोको तुम इसको
बढ़ने से
इसे ओढ़नी ,घुँघट में  समेटे हो।
चिराग  तो घर में
बहुत हैं पर
रोशनी को थामे बैठे हो ॥॥

कान्हा 'नूतन '

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