Friday 5 September 2014

गुरूजी

जीवन के पथ पर था निकल पड़ा
अनजाने, सब साथी थे
अनदेखी एक मंजिल थी
ना मोड़ थे मुझको पता यहाँ
ना काँटो का था दर्द पता।
तेरे अनुमार्ग पर चलकर ही
मैं जो कुछ हूँ वो बन पाया
ख्वाबों मैं थे आयाम कई
अब रूप साकार है मिल पाया।
तेरे मुझ पर विश्वास बिन
सफल नहीं मैं हो पाता
जो भी हूँ वो तुझसे है
तुझ बिन भला क्या हो पाता;
तुझ बिन भला क्या हो पाता..॥
~कान्हा'नूतन'

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