बेटी
बेटी ही घर की मर्यादा है;
बेटी से घर की
हर कली खिली।
बेटी ने धरा को सींचा है;
दो रिश्तों की
इसमें नींव पली।
क्यों रोको तुम इसको
बढ़ने से
इसे ओढ़नी ,घुँघट में समेटे हो।
चिराग तो घर में
बहुत हैं पर
रोशनी को थामे बैठे हो ॥॥
कान्हा 'नूतन '
nice...
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